(नागपत्री एक रहस्य-25)

ऐसा नहीं कि शीतलता अचानक सिर्फ चित्रसेन जी के कमरे में थी, अपितु उसका प्रभाव मंदिर और उसके आसपास के प्रदेश में भी था, अचानक मौसम परिवर्तन से मंदिर में भक्तों की आवाजाही रुक गई, और वैसे भी संध्या के पश्चात उस और आने की मनाई थी।

     और मंदिर के पास सिर्फ मंदिर से दूर बने विश्राम कक्ष में चित्रसेन जी के अलावा और किसी को रुकने की अनुमति नहीं थी।



लेकिन आज पहली बार अनुज कुमार जिसे गुरुजी के सेवा के लिए चित्रसेन जी ने नियुक्त किया था, वह वापस ना जा पाया, वह भयभीत था, क्योंकि मंदिर के विषय में उसे विशेष ज्ञान नहीं था , 
     लेकिन चित्रसेन जी की आज्ञा का पालन ना करें ऐसा साहस उसमें ना था, जैसे ही चित्रसेन जी को याद आया कि उन्होंने अनुज को वापस जाने की अनुमति नहीं दी है, और अति शीघ्र वह घड़ी आने वाली है।



जबकि मंदिर में परा शक्तियों का आगमन संभव है, तो वह चिंतित हो उठे और तुरंत जा अनुज कुमार को वापस जाने का कहने लगे, लेकिन तभी अचानक उनकी नजर आकाश से मंदिर की ओर आने वाली एक विशेष आभा किरण पर पड़ी।
              तब वे समझ गए कि अब कोई उपाय शेष नहीं, उन्होंने अनुज को अपने कमरे में जाकर बाहर ना निकलने की समझाइस दे अपने गुरु के पास आ गए।



गुरु सर्व ज्ञानी थे और तैयार भी, उन्होंने तुरंत चित्रसेन को टोकते हुए कहा, भूलवश भी नियमों का खंडन ना करना एक शिष्य का धर्म होता है, लेकिन आज तुमने एक साथ कितने नियमों का उल्लंघन किया, यह तुम भी जानते हो??
                 चलो मुझे पूर्व सरोवर में जाकर स्नान करना है, इससे पहले कि रात्रि का प्रथम पहर समाप्त हो जाए, एक विशेष मुहूर्त है आज, और शायद तुम्हारी परीक्षा की घड़ी भी कहते हुए वे बड़े वेग से मंदिर की पूर्व दिशा की ओर चल पड़े। 



मंदिर से थोड़ी दूरी पर जाकर उन्होंने देखा कि वहां एक दिपनुमा आकृति बनी हुई है, लेकिन कोई सरोवर तो ना था, फिर आखिर गुरु जी क्या कहना चाहते हैं??
                 और आजतक उनका खुद का ध्यान इस दीपक (आकृति) की और क्यों नहीं गया? वे इतना सोच ही रहे थे कि उनके गुरु जी ने दीपक के पास जाकर अभिमंत्रित जल छिड़का और शिव आराधना की शुरुआत की।



वह देखते ही देखते उस एक अचल के साथ उस भूमि में परिवर्तित होने लगा, और अचानक तेज हवा के झोंके से उस दीपक के ऊपर जमी हुई धूल हट गई, और भी अचानक तेज रोशनी से चमकने लगा।
             दीपक के ठीक सामने थोड़ी दूरी पर एक सिंहासन प्रकट हुआ, जिसके ऊपर नागफणों का छत्र था, और उस सिंहासन पर एक शिवलिंग स्थापित था, देखते ही देखते वह नागफणों का छत्र जीवंत सा जान पडने लगा, और उसके ऊपर अनेकों नागमणि नजर आने लगे, जिसमें मध्य में नागमणि से निकलती हुई किरण आकर दीप से टकराई और वह प्रज्वलित हो उठा।




देखते ही देखते उसकी रोशनी में वहा उपस्थित सरोवर मानो स्पष्ट नजर आने लगा, जमीन से अचानक तेज पानी की धारा फूट पड़ी, और सरोवर में जल स्पष्ट चंद्रमा की रोशनी के साथ दूधिया सा नजर आने लगा,
                  जैसे ही गुरुवर ने दीप का स्पर्श कर प्रणाम किया, वह दीपक अपने चारों और असंख्य प्रकाश की किरणें बिखरने लगा, जिसकी रोशनी ने सरोवर के आसपास स्थित और छः स्तंभ जो ठीक मुख्य आसन की तरह जान पड़ते थे, वे भी प्रकाशमान हो उठे।



जब गुरुजी ने दीप आराधना की तो, उस दीप ने अपने स्थान से थोड़ा पीछे हटकर एक सीढ़ी नुमा और पुल नुमा आकृति को प्रदर्शित किया, और इसी के साथ समस्त सातों स्तंभों से एक नीली रोशनी निकल उस सरोवर के केंद्र बिंदु पर जाकर टकराने लगी, और इसी के साथ सरोवर के मध्य से एक ज्योतिर्लिंग ऊर्ध्वाधर आकार की ओर बढ़ने लगा ।
                           और अपने पूर्ण आकार में आने के पश्चात वह उन प्रकाश किरणों के मध्य ऐसा नजर आ रहा था, जैसे वे सातों ज्योतिर्लिंग उस मुख्य शिवलिंग की सेवा के लिए ही बनाया गया है। 



उसकी प्रकाश किरणें मुख्य शिवलिंग में जाकर समाहित होती जा रही थी, वह कांच का शिवलिंग उन प्रकाश किरणों को अपने आप में समाहित कर दुगने प्रकाश से चमक रहा था, तभी अचानक आसपास की भूमि में हलचल होने लगी, और गुरु जी जहां खड़े थे, उस स्थान को छोड़ चारों और सरोवर का जल बिखरने लगा। 
              उस सरोवर से फव्वारे की तरह एक तेज धारा ने उछलकर जैसे आकाश में छेद कर दिया हो, और ऐसा लगा जैसे स्वयं आकाशगंगा शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए उतरी हो। 



शिवलिंग के ऊपर लगातार बड़े वेग से जिसकी धारा शिवलिंग के पास आकर अपना वेग समाप्त कर देती है, और अभिषेक की तरह शांति पूर्वक गिरती हुई नजर आती है, ऊपर आकाश में देखने से स्पष्ट रूप में चांद तारे नजर आते हैं, और इस दौरान सरोवर से निकलने वाला जल इतनी ज्यादा मात्रा में बाहर निकला कि जैसे सब कुछ डुबो देगा। 
                 वह चमत्कारिक सरोवर अपने स्थान पर ऊंचाई की और नजर आने लगा, और गुरुजी उस शिवलिंग की आराधना में मगन हो गए।



आकाशगंगा से आने वाली जलधारा का जल अतिशय ही कुछ बुंदे गुरुजी से के ऊपर गिरने लगी,  जिसकी चमक में उनकी दिव्यता साफ नजर आ रही थी,  आज तक उनका यह स्वरूप स्वयं चित्रसेन जी ने भी नहीं देखा था,  उनका भी मन किया कि वह भी पास जाकर इस सौम्य दर्शन और पूजन का लाभ उठाएं। 
          लेकिन जैसे ही उन्होंने अपना एक पैर आगे बढ़ाया, अचानक  जैसे विशाल समुद्र में समाहित होने लगे, उन्हें फिर याद आया कि बिना गुरु आज्ञा के स्थान से न हिलने का आदेश गुरु ने उन्हें पहले ही दे चुके थे, और देखते ही देखते वह समुद्र की गहराई में जाने लगे। 



अचानक उन्हें नाग माता द्वारा स्वप्न में कही गई बात याद आई, और उन्होंने आंखें बंद करके उनका स्मरण किया, बंद आंखों से ही उन्हें ऐसा लगा जैसे सब कुछ स्पष्ट दिख रहा है, एक विशेष पत्री के अनेक पन्नों स्वयं ही समुद्र तल में पलट रहे थे ,और अनेकों नाग कन्याएं उनका पठन कर रही थीं।
                 अचानक उन्हें उनके कानों में शब्द सुनाई दिया,
नागपत्री संपूर्ण ब्रह्मांड का रहस्य, नागपत्री एक संजीवनी नाग जाति की शक्ति का मूल आधार इसे प्रणाम करो, और वापसी की याचना करो, तुम्हारा कल्याण होगा। 



जल्द ही मेरी एक भक्त मेरे प्रसाद से जन्म लेगी, और मनुष्य जीवन के पश्चात भी इसी नागपत्री का अध्ययन करेगी, इसके लिए तुम्हें उसकी पहचान के तौर पर दो अश्व जो तुम्हें दिखाई दे रहे हैं, उन्हें जब उनकी उपस्थिति प्रयास होगा कि वे ही है, तब इन अश्वों का स्मरण करने से स्वयं ही प्रकट हो जाएगा। 
                    उनकी घुड़सवारी के लिए नामांकन लक्षणा के नाम से याद रखना, कहते हुए अचानक वे पानी की गहराइयों से ऊपर उठने लगे, और जब अपने स्थान पर पहुंचे, तब तक सब कुछ सामान्य हो चुका था।


क्रमशः....

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1 Comments

Mohammed urooj khan

18-Oct-2023 10:50 AM

👌👌👌👌👌

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